बावड़ी क्या है । इससे संबंधित सम्पूर्ण जानकारी
Bavdi Kya Hai : हमारे पूर्वजों ने प्राचीन काल से ही कई प्रकार के संसाधनों का सहजता के साथ निर्माण कर उनको उपयोग में लिया। उन्ही प्राचीन संसाधनों में से एक जल संसाधन के रूप में बावड़ीयों का भी प्रमुख स्थान है जिनकी छबी का दर्शन आज भी हम स्पष्ट रूप से कर सकते हैं। हमारे देश में निर्मित कई बावडीयां आज भी अपनी विशालता एवं विशेषताओं के कारण विश्व भर में अपनी छाप छोड़े हुए हैं।
अगर बावड़ी कि परिभाषा कि बात करें तो यह एक सिढ्डीयों से बनी विशेष प्रकार कि श्रृंखला होती है, जिनका उपयोग भूमिगत जल स्रोत तक पहुंचने हेतु किया जाता है ये मुख्यतया चूना पत्थर व ईंटों से निर्मित होती है तथा इनका स्तर भूमिगत कुंए, कुण्ड या जो भी जल स्रोत है तक सीमित होता है।
क्यों पढी बावड़ियों की आवश्यकता :
प्राचीन काल में जल संसाधन कि कमी को पूरा करने के उद्देश्य से हमारे पूर्वजों ने बावड़ियों का निर्माण किया था । ये बावड़ियां किसी धार्मिक स्थल जैसे मंदिर आदि के आस पास बनाई जाती थीं यह बावड़ियां मनुष्य के रोजमर्रा के कार्यो कि दृष्टि से भी विशेष स्थान रखती थी। पहले लोग पानी भरने, नहाने धोने व अन्य कार्यों में इनका प्रयोग करते थे यह बावड़ियां किसी राजा या शासकों एवं कुछ सामंतों द्वारा भी निर्मित करवाई गई थी । जिनका उपयोग सेना के साथ यात्रा करते वक्त जल कि कमी कि पूर्ति हेतु किया जाता था।
बावड़ियों का निर्माण जनसाधारण के लिए भी विशेष रूप से किया गया था । सामान्य जनता के लिए सामुहिक बावड़ियां होती थी ।
कैसी होती है बावड़ियों कि संरचना:
बावड़ियों कि बात करें तो यह एक सिढ्डीयों के ढांचे के रूप में बना एक विशाल कुंड होता है जिसके अंदर एक जल कूप कि व्यवस्था होती है इस संरचना में ये सिड्डीयां ऊपर से चौड़ाई में होती है तथा जैसे जैसे हम निचे उतरते जाते हैं वैसे वैसे इनकी संरचना सिकुड़ती जाती है इनकी संरचना एक विशेष प्रकार कि होती है कई बावड़ियां तो भूल भुलैया जैसा कार्य करती हैं अर्थात हम जिस सिड्डी से जाते है उससे दोबारा वापस आना थोडा मुश्किल होता है। इनकी आकृति गोलाकार, चौकोर या अन्य प्रकार कि हो सकती है यह सब एक वास्तु कला पर निर्भर करता है इसके अतिरिक्त कई बावडीयो में तो इन्हें ढकने की भी व्यवस्था होती है। कई बावड़ियों में झरोखे या छोटी सी अलमारी बनाई जाती थीं जिसमें विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं कि मूर्तियां स्थापित कि जाती थी यह कलात्मक संरचना का एक विस्तृत नमुना है जिसकी छवि आज भी लोगों के मन को लुभाती है।
कितना पूराना है इनका इतिहास:
प्रारंभ में बावड़ियों का निर्माण हिंदू शासकों ने किया लेकिन इनकी खाश विशेषताओं से वशीभूत होकर कुछ समय पश्चात मुस्लिम शासकों ने भी कई बावड़ियां बनवायी, बावड़ियों के सबसे पहले निर्माण कि बात करें तो सबसे पहले इनका निर्माण करीब छठी शताब्दी से शुरू हुआ था तथा सबसे पहले इनका प्रचलन गुजरात के दक्षिण-पश्चिमी भाग में आरम्भ हुआ था इसके पश्चात धीरे धीरे इनकी कलात्मक संरचना ने उत्तर कि ओर रूख किया और राजस्थान में भी कई ऐतिहासिक बावड़ियों का निर्माण हुआ जिनमें से कुछ तो आज भी चर्चा में बनीं हुई है।
राजस्थान में बावड़ियों का निर्माण कार्य 11वी से 16 वी शताब्दी में इनका निर्माण पूर्ण चर्म सीमा पर था। एक लेखक हुए हैं अनुपम मिश्र जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान की रजत बूँदें’ में राजस्थान कि बावड़ियों के इतिहास, शिल्पकला और इनकी सामाजिक उपयोगिताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला है।
आज के समय में इनकी स्थिति क्या है:
अगर वर्तमान समय में इनकी स्थिति की बात करें तो यह काफी दयनीय है। हमारे देश में पानी का अभाव होने कि वजह से इन बावड़ियों का जल स्तर काफी नीचे चला गया है जिसके कारण अब इनके जल कूप सुखे पडे हुए हैं तथा इनका पून: निर्माण नहीं होने कि वजह से कई बावड़ीयां तो काफी जर जर अवस्था में है इसके साथ ही कुछ बावड़ियों को पर पर्यटक विभाग ने अपना अधिकार जमा लिया है जिसके जरिए हमारे देश कि राष्ट्रीय आय में कुछ हद इजाफा होना सम्भव है।
बावड़ियों के बारे में प्रचलित कहानी:
हमारे देश में कई बावड़ीयां कुछ कहानीयों कि वजह से चर्चा में बनी हुई है जैसे: आभानेरी कि बावड़ी, भांडारेज कि बावडी आदि यह बावड़ियां अपनी भूतिया कहानीयों कि वजह से चर्चा में बनीं हुई है इनके संदर्भ में ऐसा कहा जाता है कि इन बावड़ियों का निर्माण जिंद या भूतों ने रातों रात किया था तथा इसके साथ ही यहां पर रात्रि में जाना मना है।