सती प्रथा: एक पतिव्रता स्त्री के प्रेम और सम्मान का प्रमाण

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सती प्रथा से आप क्या समझते है? | Sati Pratha in hindi

Sati Pratha in hindi: सती प्रथा एक प्राचीन भारतीय प्रथा थी जिसमें एक पतिव्रता पत्नी के जीवन साथी की मृत्यु के बाद उसके साथ समाधि लेना या अपने आप को आग में अग्निदाह करके जीवन का अंत करना शामिल था । इस प्रथा का उदभव बहुत पुराने समय में हुआ और यह विशेष रूप से हिंदू धर्म में प्रचलित थी । सती प्रथा को धार्मिक प्रेम और पतिव्रता का प्रतीक माना जाता था और इसे पति की गरिमा और मान्यताओं का प्रमाण भी माना जाता था । इस प्रथा के पीछे कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं थीं ।

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सती प्रथा की सुरुआत कब हुई थी?

Sati pratha in hindi: सती प्रथा की सुरुआत के बारे में सटीक और निश्चित जानकारी कम है, क्योंकि इसका इतिहास बहुत पुराना है और यह लंबे समय तक प्रचलित रही है । सती प्रथा का जिक्र वैदिक काल से भी पहले के ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इसका आधिकारिक आरंभ और प्रचलन में बढ़ोतरी अधिकारिक रूप से कथित होने के लिए मध्यकाल (मध्य एवं उच्च काल) माना जाता है ।

मध्यकालीन भारतीय साहित्य और इतिहास में सती प्रथा के उल्लेख मिलते हैं । 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व के धर्मशास्त्री वराहमिहिर की रचना “बृहतसंहिता” में सती प्रथा का उल्लेख किया गया हैं । 13वीं शताब्दी के विशेषज्ञों में से एक वामन महाराज जैन ने भी सती प्रथा के बारे में लेखन किया था । इन लेखों से सती प्रथा के प्राचीन और मध्यकालीन समय में प्रचलित होने का संकेत मिलता है । कुछ साक्ष्यों और विवरणों के आधार पर माना जाता है कि सती प्रथा का प्रारंभ वास्तविकता में मध्यकाल के दौरान हुआ ।

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यह सामान्यतः 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित थी । हालांकि, यह प्रथा निश्चित रूप से समय के साथ विकसित हुई और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर प्रभावित हुई । कई इतिहासकारों ने सती प्रथा का उद्भव भारतीय साम्राज्यों, जैसे गुप्त, पाल और प्रतिहार साम्राज्यों के दौरान होने के संबंध में विचार दिए हैं । उनका कहना है कि सती प्रथा राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव का परिणाम थी, जहां स्त्री अपने पति के साथ जलकर मरने के माध्यम से उसकी प्रतिष्ठा और वीरता को प्रदर्शित करती थी  ।

सती प्रथा की प्रचलिता में बदलाव समय के साथ हुआ और इसका प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न रूपों में देखा गया । यह उत्तर भारत में मुखतः पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बंगाल में प्रचलित थी । सती प्रथा के विभिन्न रूपों का वर्णन करते समय, उत्तर भारत में इसे “सती” या “जौहर” कहा जाता था, जबकि पूर्वी भारत में इसे “सती” कहा जाता था । पश्चिम बंगाल में इसे “अनुसूया” कहा जाता था ।

इस प्रथा में, एक पतिव्रता स्त्री अपने पति की मृत्यु के बाद अपने पति के साथ अपने आप को अग्नि को समर्पित करती थी, जो सामान्यतः शव के रूप में होता था । सती उद्देश्य था कि स्त्री अपने पति के प्रेम और सम्मान का प्रमाण दे और अपनी स्वामित्वता को सिद्ध करे । इसे एक पवित्र और शौर्यपूर्ण गर्व की प्रतीकता माना जाता था ।

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हालांकि, सती प्रथा में विवाद और विरोध भी था । कुछ लोग इसे महिलाओं के स्वतंत्रता और अधिकारों का उल्लंघन मानते थे, जबकि कुछ लोग इसे महिलाओं की स्वाधीनता और उनकी आत्मविश्वास की प्रतीकता मानते थे ।

सती प्रथा के बारे में अधिक जानकारी के लिए, इसे विभिन्न काल, स्थान और सामाजिक परिवेश के संदर्भ में देखना महत्वपूर्ण है । सती प्रथा का प्रारंभ और प्रचलन भारत के विभिन्न भागों में भिन्न समयों पर देखा गया है । यह प्रथा मुख्य रूप से उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश में प्रचलित थी ।

उपनिषदों, पुराणों, काव्यों, और इतिहासग्रंथों में सती प्रथा का उल्लेख मिलता है । उत्तर भारत में सती प्रथा का प्रारंभ शायद मौर्यकाल जब भारतीय साम्राज्यों ने प्रबल बनना शुरू किया था । इसके बाद सती प्रथा को समाज की एक प्रमुख पहचान बनाया गया। यह एक पतिव्रता प्रथा थी जहां विधवाओं ने अपने पतियों के साथ जलकर मरने का निर्णय लिया।

12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान, सती प्रथा ने और विकास किया और आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त की । इस दौरान राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों के कारण सती प्रथा को प्रमुख धार्मिक आचार्यों और राजपरिवारों ने समर्थन दिया । यह प्रथा कई राजघरानों में प्रचलित हुई और राजनीतिक सत्ताओं द्वारा संरक्षित रखी गई । हालांकि, 19वीं शताब्दी के मध्य और उसके बाद, सती प्रथा पर सवाल उठने लगे और इसे समाज के कुछ वर्गों और सामाजिक सुधार आंदोलनों द्वारा खारिज किया गया । 19वीं और 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया और इसे कानूनी तौर पर अवैध घोषित किया गया ।

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आधुनिक भारतीय समाज में सती प्रथा विलुप्त हो गई है, और यह अवैध और अन्यायपूर्ण मानी जाती है । यह सामाजिक, धार्मिक और मानसिक परिवर्तन का उदाहरण है, जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए हुए हैं ।

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